राजनीति में आने लगी सुशिक्षित महिलाएं

Posted by Rajendra Rathore on 9:38 AM

गांवों में अब सरपंच पतियों के दिन लद गए हैं। पंचायतों में महिला आरक्षण के बाद यह महिलाओं की चौथी पीढ़ी है, जिसमें अब पढ़ी-लिखी और सुशिक्षित महिलाएं आगे आने लगी हैं। उम्मीद की यह लहर देश भर में जागी है। अकेले राजस्थान की ही बात करें तो, यहां की करीब 65000 महिला जन प्रतिनिधियों में से लगभग 20000 शिक्षित हैं। बड़े राजनैतिक दल जमीनी राजनीति से जुड़ी इन महिलाओं में भविष्य के नेतृत्व को खोजने लगे हैं, तो इसके पीछे इन शिक्षित महिलाओं की गांवों के विकास में सतत लगन और राजनैतिक समझदारी के साथ कुशल नेतृत्व क्षमता भी है।
पिछले चुनावों के मुकाबले देखें तो शिक्षित महिलाओं में उम्मीद से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इस आश्चर्यजनक पर परिवर्तन में यह बात और भी गौर करने लायक है कि पहले जहां शिक्षित महिलाओं में अधिकतम दसवीं पास हुआ करती थीं
, अब स्नातक, डबल एमए और विदेशों में शिक्षा प्राप्त महिलाएं भी पंचायती राज के माध्यम से अपने गांव और समाज की तस्वीर बदलने में लगी हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्र में जनप्रतिनिधि होना अब महिलाओं के राजनैतिक कॅरियर के रूप उभरा है। डूंगरपुर जैसे आदिवासी जिले में गैंजी गांव की वार्ड पंच रमिला यादव एमए, बीएड हैं और अपने गांव की महिलाओं को जागृत करने में लगी हैं। उनकी मेहनत अब रंग लाने लगी है और लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं। राजसमंद जिले के ऊपलीओड़न गांव की उप सरपंच राखी पालीवाल बीए अंतिम वर्ष की छात्रा हैं और प्रदेश की सबसे कम उम्र की उप सरपंच हैं। राखी ने अपनी शिक्षा के साथ गांव के विकास को इस तरह जोड़ लिया है कि वे अब गांव में सामान्य शिक्षा के साथ लोगों को और खास तौर पर महिलाओं को कंप्यूटर शिक्षा देने में जुटी हुई हैं। वे अपनी बाइक पर महिलाओं को बैठाकर बैंक ले जाती हैं और कई ऎसे साहसिक कामों को अंजाम देने में लगी रहती हैं, जो अब तक महिलाओं के लिए वर्जित माने जाते रहे हैं। चौथी पीढ़ी की महिला जनप्रतिनिधियों में जहां उच्च शिक्षित महिलाएं आगे आई हैं, वहीं कम शिक्षित और निरक्षर महिलाओं के नेतृत्व में सबसे महžवपूर्ण बात यह देखने में आई है कि इनमें से अधिकांश अपने गांव और क्षेत्र के चहुंमुखी विकास के लिए कृतसंकल्प हैं। शिवदासपुरा, जयपुर की सरपंच अनिता बैरवा ने अपने इलाके में शराब पीकर उत्पात मचाने वाले एक शराबी की ऎसी पिटाई की, कि बाकी शराबियों ने तौबा कर ली। अब वहां शराब और मीट की कोई दुकान नहीं है। अनिता कहती हैं कि अपनी शिक्षा से मुझे क्षेत्र की महिलाओं को संगठित करने का हौसला मिला। अब तक जो लोग ग्राम सचिव के चक्कर लगाकर परेशान होते थे, उनके काम एक शिक्षित सरपंच के कारण आसानी से तुरंत हो जाते हैं और भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है।
आवल गांव की सरपंच सरोज बाला ने अपने क्षेत्र में उन लोगों के घरों के बाहर बीपीएल की नेमप्लेट लगाई
, जो वास्तव में बीपीएल नहीं हैं, लेकिन उन्होंने इसके कार्ड बनवा रखे थे। सरोज के इस काम का अतना असर हुआ कि लोगों ने खुद अपने नाम कटवाए, जिसकी वजह से 25 वास्तविक बीपीएल परिवारों को लाभ हुआ। लौहारा, टोंक की साक्षर सरपंच बादाम देवी ने आंगनबाड़ी और स्कूल के कर्मचारियों की नियमित हाजिरी लगवाई, वरना तो लोग हाजिरी करके ही चले जाते थे। 45 विधवाओं की पेंशन शुरू करवाने और 20 बीपीएल परिवारों को मकान दिलवाना बादाम देवी की बड़ी उपलब्धि है। ओडाए, राजसमंद की सरपंच वर्द्धिनी पुरोहित डबल एमए हैं और उन्होंने अपने क्षेत्र में पंचायत की निजी आय बढ़ाकर खासे विकास कार्य करवाए हैं। उडवारिया, सिरोही की वार्ड पंच कमला देवी तीसरी कक्षा तक पढ़ीं, लेकिन प्रौढ़ शिक्षा में पढ़ाई कर अक्षर मित्र पुरस्कार हासिल किया। गांव की करीब तीन दर्जन महिलाओं के साथ ही कई पुरूषों को भी कमला ने साक्षर बनाया। आठवीं तक शिक्षित पादर, सिरोही की सरपंच पारस कंवर ने सबसे पहले गांव में शराब का ठेका बंद कराया और बाद में दो लड़कियों के बाल विवाह रूकवाए। अब उनके क्षेत्र में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग गई है। 12वीं तक पढ़ी लूणी, जोधपुर की सीता देवी ने अधिकारियों से संघर्ष कर गांव की पानी-बिजली की समस्या को खत्म किया। अब गांव में पूरा पानी मिलता है और 12-13 घंटे बिजली आती है। पानी-बिजली की किल्लत से निजात पाकर गांव वाले खुश हैं। गुलाबगंज, सिरोही की सरपंच मधु देवी कर्मावत यूं तो महज पांचवीं पास हैं, लेकिन स्वाध्याय से उन्होंने इतना ज्ञान अर्जित कर लिया है कि अब वो कविताएं लिखती हैं और कंप्यूटर पर काम करती हैं। सरपंच के रूप में काम करते हुए मधु ने 50 लोगों को पेंशन दिलवाई और 19 नए हैंडपंप लगवाने के साथ ही 300 परिवारों को बीपीएल में शामिल करवाया। कालू, बीकानेर की सरपंच राधा सेठिया ने क्षेत्र में पेयजल की समस्या को हल करने के लिए टैंकर से पानी की नियमित आपूर्ति आरंभ की। राधा ने अपने इलाके में 6 नए अध्यापकों की नियुक्ति करवाई। कर्नाटक और तमिलनाडु में ग्राम पंचायतों में तकनीक और दूरसंचार के साधनों का उपयोग आम बात है। वहां पंचायत की बैठकों का केबल टीवी पर प्रसारण होता है और अनेक सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध रहती हैं। इधर राजस्थान में टोंक जिले के सोडा गांव की चर्चित युवा सरपंच छवि राजावत एमबीए हैं और अपने क्षेत्र के विकास के लिए निरंतर प्रयास कर रही हैं। छवि ने अपने गांव की वेबसाइट भी बनाई है, जिस पर सभी प्रकार की जानकारियां उपलब्ध हैं।
राजस्थान में वार्ड पंच से लेकर प्रधान तक ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की कुल संख्या करीब
1 लाख 20 हजार है। इनमें सरपंच और उपसरपंचों की संख्या 18374 है। पिछले चुनाव में 54 प्रतिशत महिलाएं जीत कर आईं अर्थात लगभग पैंसठ हजार महिलाएं गांवों की सरकार चला रही हैं। एक तथ्य यह है कि पुरूष और महिला में सभी 9187 सरपंच हस्ताक्षर कर सकते हैं। गांवों की सरकार में करीब 20 हजार महिलाएं ऎसी हैं, जो सुशिक्षित हैं। इनमें बहुत-सी महिलाएं स्नातक और उच्च शिक्षित भी हैं। हालांकि निर्वाचन विभाग या सरकार की ओर से जनप्रतिनिधियों की शिक्षा को लेकर कोई अधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं, लेकिन ग्रामीण महिला जनप्रतिनिधियों के साथ काम करने वाली "द हंगर प्रोजेक्ट" जैसी संस्थाओं के प्रतिनिधि मानते हैं कि जनगणना में महिलाओं की शिक्षा के आंकड़े इंगित करते हैं कि ग्रामीण जनप्रतिनिधित्व में भी पढ़ी-लिखी महिलाएं बड़ी संख्या में सामने आई हैं, जो ग्रामीण विकास के संकेत हैं।