हिन्दुस्तानी धरती का माटीपुत्र ‘‘भारत कुमार’’

Posted by Rajendra Rathore on 9:42 AM

(अभिनेता मनोज कुमार के 74 वें जन्मदिवस पर विशेष)

फिल्म जगत में भारतीयता की खोज करने वाले मशहूर कलाकार मनोज कुमार अपनी देशभक्तिपूर्ण फिल्मों की वजह से जाने जाते हैं। उन्होंने दर्शकों को देशप्रेम और देशभक्ति पर भावनात्मक फिल्में बनाईं और मुनाफे से ज्यादा नाम कमाया, जिसके कारण वे भारत कुमार कहलाए। फिल्म जगत में मनोज कुमार देशभक्ति पूर्ण फिल्मों के कारण जाने जाते हैं।
पाकिस्तान के अबोटाबाद में 24 जुलाई 1937 को जन्में मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी है। देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में बस गया। बचपन के दिनों में मनोज कुमार ने दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म शबनम देखी थी। फिल्म में दिलीप कुमार के निभाए किरदार से मनोज कुमार इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने भी फिल्म अभिनेता बनने का फैसला कर लिया। मनोज कुमार ने स्नातक की शिक्षा दिल्ली के मशहूर हिंदू कॉलेज से पूरी की। इसके बाद अभिनेता बनने का सपना लेकर वे मुंबई आ गए। बतौर अभिनेता मनोज कुमार ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म फैशन से की। कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल हो गई। वर्ष 1957 से 1962 तक मनोज कुमार फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म फैशन के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वे उसे स्वीकार करते चले गए। प्रमुख भूमिका की उनकी पहली फिल्म कांच की गुड़िया (1960) थी। इस बीच उन्होंने रेशमी रूमाल, सहारा, पंचायत, सुहाग, सिंदूर, हनीमून, पिया मिलन की आस जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुई। मनोज कुमार के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट की वर्ष 1962 में प्रदर्शित क्लासिक फिल्म हरियाली और रास्ता से चमका। फिल्म में उनकी नायिका की भूमिका माला सिन्हा ने निभाई। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने मनोज कुमार को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। इस फिल्म के सदाबहार गीत आज भी दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। वर्ष 1964 में मनोज कुमार की एक और सुपरहिट फिल्म ‘‘वह कौन थी’’ प्रदर्शित हुई। फिल्म में साधना ने नायिका की भूमिका निभायी। फिल्म के निर्माण के समय अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था, लेकिन निर्देशक राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया, यह बात बहुत कम लोगों को ही पता है। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमय मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गए। साथ ही फिल्म की सफलता के बाद राज खोसला का निर्णय सही साबित हुआ। वर्ष 1965 में ही मनोज कुमार की एक और सुपरहिट फिल्म ‘गुमनाम’ भी प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी, मधुर गीत, संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल किया गया था। इस फिल्म में हास्य अभिनेता महमूद पर फिल्माया गाना’ हम काले है तो क्या हुआ दिलवाले है’ दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।
वर्ष 1967 में प्रदर्शित देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्म उपकार में मनोज कुमार ने किसान की भूमिका के साथ ही जवान की भूमिका में भी दिखाई दिए। फिल्म में उनका नाम भारत था, इसी फिल्म के बाद में इसी नाम से वह फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर हो गए। फिल्म में कल्याणजी आंनदजी के संगीत निर्देशन में पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर की आवाज में गुलशन बावरा द्वारा रचित गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती’ श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है। उपकार फिल्म में मनोज कुमार ने भारत नाम के किसान युवक का किरदार निभाया था, जो परिस्थितिवश गांव की पगडंडियाँ छोड़कर मैदान-ए-जंग का सिपाही बन जाता है। जय जवान जय किसान के नारे पर आधारित वह फिल्म उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के विशेष आग्रह पर बनाई थी। फिल्म में गांव के आदमी के शहर की तरफ भागने, फिर वापस लौटने और उससे जुड़े सामाजिक रिश्तों की कहानी थी, जिसमें उस वक्त के हालात को ज्यादा से ज्यादा समेटने की कोशिश की गई थी। उपकार खूब सराही गई और उसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। फिल्म को द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार तथा सर्वश्रेष्ठ संवाद का बीएफजेए अवार्ड भी दिया गया। वहीं मनोज कुमार को फिल्म शहीद के लिए सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। शहीद में सरदार भगत सिंह का किरदार निभाकर मनोज कुमार ने फिल्म को अमर बना दिया। वर्ष 1970 में मनोज कुमार के निर्माण और निर्देशन में बनी एक और सुपरहिट फिल्म पूरब और पश्चिम प्रदर्शित हुई। फिल्म के जरिए मनोज कुमार ने एक ऐसे मुद्दे को उठाया जो दौलत के लालच में अपने देश की मिट्टी को छोड़कर पश्चिम में पलायन करने को मजबूर है। वर्ष 1972 में मनोज कुमार के सिने करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म शोर प्रदर्शित हुई। वर्ष 1974 में प्रदर्शित फिल्म रोटी कपड़ा और मकान मनोज कुमार के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म दस नंबरी की सफलता के बाद मनोज कुमार ने लगभग पांच वर्षो तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 1981 में मनोज कुमार ने फिल्म क्रांति के जरिए अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की।
मनोज कुमार को वर्ष 1968 में फिल्म उपकार के सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार, वर्ष 1972 में फिल्म बेईमान के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार, वर्ष 1975 में फिल्म रोटी कपड़ा और मकान के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। वहीं वर्ष 1992 में उन्हें पद्मश्री व वर्ष 1999 में लाइफ टाइम अचीवमेंट के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मनोज कुमार को दादा साहब फालके रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। वर्ष 2007-08 में मध्यप्रदेश के खण्डवा नगर में आयोजित एक गरिमामय समारोह में उन्हें मशहूर फिल्म अभिनेता और पार्श्व गायक किशोर कुमार अलंकरण से सम्मानित किया गया। उनकी आखिरी फिल्म मैदान-ए-जंग (1995) थी, जबकि बतौर निर्देशक उन्होंने अपनी अंतिम फिल्म ‘जय हिंद’ 1999 में बनाई।
देश भक्ति फिल्म उपकार का गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ आजादी की हर वर्षगाँठ पर देश भर में बजाया जाता है। इस गीत को गाकर महेंद्र कपूर हमेशा के लिए अमर हो गए। इसी तरह फिल्म पूरब-पश्चिम का प्रेम गीत ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे’ इस दर्दीले गीत को सदाबहार गायक मुकेश ने अपनी आवाज दी, जो लोगों के जेहन में हमेशा ठहरा हुआ है। फिल्म रोटी कपड़ा और मकान का गीत ‘हाय-हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी’, और नहीं बस और नहीं, शोर फिल्म के लिए संतोष आनंद द्वारा लिखी गई बेहतरीन गीत ‘गीत-एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है’ इस तरह की तमाम गीत आज भी लोगों की जुबां पर है। इन गीतों की वजह से मनोज कुमार की फिल्में काफी हिट हुई। इन फिल्मों के गीतों की लंबी फेहरिस्त बनाई जा सकती है, लेकिन मनोज कुमार के लाजवाब भूमिकाओं की नहीं। मनोज कुमार याद क्यों नहीं आते, इसके कुछ और भी कारण हैं।
दूसरी तरफ अपनी फिल्मों के जरिए लोगों को देशभक्ति की भावना का गहराई से एहसास कराने वाले मशहूर अभिनेता और निर्माता निर्देशक मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बेहद प्रभावित हैं और इसी भावना ने उन्हें शहीद जैसी कालजयी फिल्म में देश के इस अमर सपूत के किरदार को जीवंत करने की कोशिश की थी। मनोज कुमार महान देशभक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस और चंद्रशेखर आजाद के जीवन पर फिल्म बनाना चाहते हैं। इसके अलावा उनकी भारत-पाक विभाजन मुद्दे पर भी फिल्म बनाने की योजना हैं। हिन्दुस्तानी धरती के देशभक्त फिल्मकार, निर्देशक व अदाकार मनोज कुमार को मेरा शत् शत् नमन्।