खून की कमीं से हर साल 15 लाख लोगों की मौत

Posted by Rajendra Rathore on 11:45 AM

रक्तदान को जीवनदान कहा जाता है, जिससे कई लोगों की जिदंगी बचती है, लेकिन लोगों में आज भी जागरूकता का अभाव है। नतीजतन खून की कमी के कारण भारत में हर साल करीब 15 लाख मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन बच्चों की है, जिन्हें थैलेसीमिया के कारण जल्दी-जल्दी खून चढ़ाने की जरूरत होती है। वहीं हादसों के शिकार, मलेरिया के मरीज, कुपोषणग्रस्त बच्चों के अतिरिक्त गर्भवती महिलाएं भी है, जिन्हे समय पर खून नहीं मिलने से काल के गाल में समाना पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की जानकारी के मुताबिक भारत में सालाना करीब एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, लेकिन इसके मुकाबले करीब 75 लाख यूनिट ही हासिल हो पाता है। यह आंकड़ा हमारे देश के लिए कम भयावह नहीं है कि करीब 25 लाख यूनिट खून के अभाव में हर रोज हजारों मरीज दम तोड़ देते हैं, जबकि आंकड़े यह भी बताते हैं कि खून के एक यूनिट से औसतन तीन लोगों की जान बचाई जा सकती है। देश में लगभग 25 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। साल भर में देश के कुल 2433 ब्लड बैंकों में 70 लाख यूनिट खून एकत्रित होता है। इसमें से केवल 20 फीसदी ही खून बफर स्टॉक में रखा जाता है, वहीं शेष इस्तेमाल हो जाता है। जबकि नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की गाइडलाइंस के मुताबिक दान में मिले हुए खून का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। दरअसल, कई बार लोगों का जीवन बचाने के लिए खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। दुर्घटना, रक्तस्त्रव, प्रसवकाल व ऑपरेशन आदि ऐसे मौके होते, जब मरीज को खून की आवश्यकता पडती है। खासकर रक्तदान की जरूरत उन लोगों को होती है जो थैलेसीमिया, हीमोफिलिया, ल्यूकीमिया इत्यादि भयंकर रोगों से पीडित होते है, जिनके शरीर में बार-बार खून पहुंचाना आवश्यक होता है। वरना उनका जीवन खतरे में पड़ जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति के इस दौर में आज भले ही किडनी ट्रांसप्लांट व पेसमेकर लगाकर इंसान को जिंदा रखा जा सकता है, लेकिन वैज्ञानिक अब तक कृत्रिम खून तैयार नहीं कर सके हैं, जिससे आपातकाल में मरीजों की जान बचाई जा सके। क्योंकि शरीर के बाहर खून किसी भी परिस्थिति में पैदा नहीं किया जा सकता। जाहिर है, इसे केवल रक्तदान से हासिल किया जा सकता है।
भारत देश में सिर्फ 50 प्रतिशत खून ही स्वैच्छिक रक्तदान से एकत्र हो पाता है, जबकि शेष की पूर्ति रिप्लेसमेंट से होती है। दुनिया भर के विकसित देशों में 90 प्रतिशत मामलों में खून के अवयवों का प्रयोग होता है, लेकिन भारत में केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही इनका प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण खून ही चढ़ा दिया जाता है। इस विसंगति की बड़ी वजह यह भी है कि हमारे देश में ब्लड कंपोनेन्ट सेपरेटर मशीनें बहुत ही कम बैंकों में ही हैं। इसके अलावा कंपोनेन्ट्स को अलग करने में लागत बढ़ जाती है। देश में फिलहाल केवल 500 ब्लड बैंक ही ऐसे हैं, जिन्हें ब्लड बैंक कहा जा सकता है। यहाँ हर साल 10 हजार यूनिट्स से अधिक खून जमा होता है। वहीं करीब 600 ऐसे ब्लड बैंक है,ं जो हर साल 600 यूनिट ही इकट्ठा कर पाती हैं। शेष 2433 ब्लड बैंक ऐसे हैं, जो 3 से 5 हजार यूनिट हर साल इकट्ठा कर लेती हैं। देश में सबसे अधिक 270 ब्लड बैंक महाराष्ट्र में हैं। वहीं तमिलनाडु में 240 और आंध्रप्रदेश में 222 ब्लड बैंक संचालित हो रहे है। मगर सबसे दुखद स्थिति उत्तर पूर्व के सात राज्यों की है, जहां महज 29 ब्लड बैंक हैं, यहां मरीजों को आपातकाल में बचा पाना डाक्टरों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होती। गौर करने वाली बात यह है कि ब्लड बैंकों में खून की कमीं का पेशेवर रक्तदाता खूब फायदा उठाते हैं। अक्सर जिन मरीजों के परिजन रक्तदान करने की स्थिति में नहीं होते, वे ऐसे पेशेवरों का सहारा लेते हैं, जो रिश्तेदार तो नहीं हैं, लेकिन ब्लडबैंक में वे रिश्तेदार या परोपकारी बनकर पहुँच जाते हैं। देश में ऐसे पूंजीपतियों की कमी नहीं है जो अस्पतालों के आपात कक्ष या ऑपरेशन थिएटरों में पड़े अपने रिश्तेदारों को रक्तदान करने के बजाए मुंहमांगी रकम पर खून खरीद कर देने की पेशकश करते हैं। इन पूंजीपतियों की वजह से ही आज देश में पेशेवर रक्तदाताओं का एक बड़ा समूह बन गया है, जो मोटी रकम लेकर अपना खून मरीजों के परिजनों को बेचते हैं।
इसी पर लगाम कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में एक निर्देश जरी कर देश में पेशेवर रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था। उस समय न्यायालय की मंशा यह थी कि मरीज के परिजनों से लिए गए रक्त की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी, लेकिन कोर्ट के निर्देश का अमल धरातल पर नहीं हो सका। यही वजह है कि व्यावहारिक तौर पर पेशेवर लोग खून बेचते हैं, वहीं कुछ लोग गरीबी के कारण रकम लेकर रक्तदान करने को तैयार रहते हैं। रक्तदान के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए शासन प्रशासन हर साल करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा रही है, लेकिन अब तक सारे प्रयासों का नतीजा कुछ खास नहीं निकला है। बहरहाल, आज हम सभी शिक्षित व सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि, दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं तो क्यों न हम रक्तदान के पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान कर लोगों को जीवनदान दें।