मां के आंचल में सारी दुनिया

Posted by Rajendra Rathore on 5:51 AM

9 मई यानी मदर्स डे, इसकी कल्पना करते ही मन में मां के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना जागृत हो जाती है। संतान की खुशी और सुख माँ के लिए उसका संसार होता है, लेकिन बड़े होने के बाद संतान यह भूल जाती है कि उन्हें पालने में मां ने कितनी मुसीबत झेली होगी।
दरअसल, मदर्स डे मनाने का मूल कारण माताओं को सम्मान देना और एक शिशु के उत्थान में उसकी महान भूमिका को सलाम करना है। यह मातृत्व प्रेम ही है, जिसमें मां अपनी संतान के लिए वह सब कुछ छोड़ देती है, जिसे सामान्य तौर पर छोड़ना एक इंसान के लिए संभव नहीं। ममता की यही ताकत एक महिला को गर्भ धारण करने का बल देती है और वह उसे 9 माह गर्भ में पोषित करती है। कभी बच्चे की जिंदगी की बात आती है तो मां अपने प्राणों को निछावर करने से भी नहीं हिचकती। मां और संतान के बीच इस अतिसंवेनशील अपनत्व की जगह क्या है? आखिर कौन-सा ऐसा कारण है, जो माता को अपनी संतान के प्रति इतना संवेदनशील बना देता है और वह अपनी परवाह किए बगैर उसके हित के बारे में सोचती है। इसे समझना और बूझना आसान नहीं है। वैज्ञानिक ढंग से इसकी व्याख्या तो शायद असंभव सी है। हां, भावनाओं का शरीर पर जो प्रभाव पड़ता है, उसका अध्ययन अवश्य किया जा सकता है। वैज्ञानिक मातृत्व को जैविक गुण मानते हैं, जो एक स्त्री के भीतर रचा-बसा होता है। साफ है कि मां है तो सृष्टि, संतति, ममता और जिंदगी है। बावजूद इसके क्या कभी हमने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में मां ही क्यों याद आती है? क्योंकि वह मां ही होती है जो में जन्म से जानती है।
मां की ममता पर देश के सुदूर पश्चिम में स्थित अर्बुदांचल में एक कहानी प्रचलित है। कहा जाता है एक युवक किसी लड़की से प्रेम करता था। वह लड़की के प्रेम में ऐसा खोया कि सबकुछ भुला बैठा। लड़का द्वारा शादी का प्रस्ताव रखे जाने पर लड़की ने उसके सामने एक शर्त रखी। उसने कहा कि वह तभी विवाह करने को तैयार होगी, जब लड़का अपनी मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल लाए। प्रेमिका के कहे अनुसार युवक अपनी मां का कलेजा निकालकर लौट रहा था, तभी हड़बड़ी में उसे ठोकर लगी और वह कलेजे से दूर जा गिरा। इस पर कलेजे से आवाज आई, बेटा, कहीं चोट तो नहीं लगी...आ बेटा, पट्टी बांध दूं...। मां हमारे लिए जितना कुछ करती है, उतना कोई दूसरा कर ही नहीं सकता। जाहिर है मां के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि, एक सदी भी कम है।