नक्सल प्रभावित राज्यों में कोई सुरक्षित नहीं

Posted by Rajendra Rathore on 1:18 AM

छत्तीसगढ़ समेत भारत के सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में जनजीवन सुरक्षित होने का पुलिस भले ही दावा करे, लेकिन लगातार बढ़ रही नक्सली वारदातों से किसी के जनजीवन को सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। जिला स्तर पर कलेक्टर प्रशासन का प्रमुख होता है, लेकिन मल्कानगिरी में पदस्थ कलेक्टर के अपहरण ने पुलिस के दावों की पोल खोलकर रख दी है। उड़ीसा के मल्कानगिरी में सुरक्षा की जो स्थिति है, उस पर गंभीर प्रश्नवाचकचिन्ह नजर आता है। ऐसे में अब गलतियों को सुधारने पर ध्या देना केन्द्र राज्य सरकार की अहम जिम्मेदारी बनती है। साथ ही नक्सल प्रभावित राज्यों में सत्तासीन सरकार को कोशिश करना चाहिए कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना फिर हो।
जहां ऐसी घटनाएं हो सकती हैं, जहां प्रशासन अतिसंवेदनशील है, वहां सुरक्षा का स्तर ऊंचा होना चाहिए। नक्सलियों आतंकियों का एक लक्ष्य होता है और वे अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए ऐसी वारदात करते हैं, ताकि अपनी मांग मनवाने के लिए सौदा कर सकें। उड़ीसा से अभी जो जानकारी सामने रही है, इस बार नक्सली अपने साथियों को छुड़ाना चाहते हैं। अपने साथियों को छुड़ाने के लिए नक्सली शासन-प्रशासन पर इतना दबाव बनाना चाहते हैं कि उववके 700 सही, कम से कम 70 साथी तो छूट जाएं। मल्कानगिरी के कलेक्टर का अपहरण हुआ है, तो नक्सलियों के पास सौदा करने की क्षमता बहुत बढ़ गई है। अब यह कहना मुश्किल है कि कलेक्टर को छुड़ाने के लिए सरकार कितना झुकेगी या नहीं झुकेगी। नक्सली कुछ मांगेगे, उन्हें कुछ दिया जाएगा, वहीं मध्यस्तता के लिए कुछ लोगों को बीच में डाला जाएगा। इसमें क्या होगा, कितनी सफलता मिलेगी, यह अभी बताना मुश्किल है। केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी नक्सली हिंसा को राष्ट्र के सामने बड़ी चुनौती माना है। चिदंबरम ने तो यहां तक माना है कि नक्सलियों से जूझने के लिए हम पर्याप्त कदम नहीं बढ़ा पाए हैं। यह एक राष्ट्रीय समस्या है, इसका जो समाधान है, वह राष्ट्रीय स्तर पर भी है और प्रादेशिक स्तर पर भी। जब तक राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच पूरी समझ के साथ काम नहीं होगा, तब तक नीति बनाने और उसे लागू करने में समस्याएं आएंगी। यह बहुत दुर्भाग्य की स्थिति है कि नक्सल हिंसा को अभी भी राज्य की कानून-व्यवस्था की समस्या माना जा रहा है। हमारे संविधान के अंदर राष्ट्रीय सुरक्षा नाम का कोई वर्णन नहीं है। हम अभी भी यह समझ रहे हैं कि आंतरिक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के बीच कोई फर्क नहीं है। नक्सलवाद कानून व्यवस्था का विषय नहीं है, आंतरिक सुरक्षा का विषय है। नेपाल में नक्सलवाद फैला है, जबकि आंध्रप्रदेश में कड़े कदम उठाए गए, तो नक्सलवादी वहां से खिसककर उड़ीसा, झारखंड में घुस गए हैं। नक्सलवादियों को बारूद, हथियार, पैसा कहां से रहा है, इस पर विचार करें, तो यह अंतरराष्ट्रीय समस्या हो जाती है। नक्सल समस्या को खत्म करने के लिए केन्द्र राज्य सरकार को आंतरिक सुरक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योकि आज नक्सलवाद बड़ी चुनौती है, इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार को पूरी ताकत लगाना होगा।