अंधविश्वास से आखिर कब उबरेगा समाज?
इस आधुनिक युग में इंसान आज पृथ्वी से उपर उठकर ग्रह-नक्षत्र तक पहुंच गया है, लेकिन अंधविश्वास की जड़े आज भी समाज से नहीं उखड़ी है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जादू-टोना के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया जाना आज भी बदस्तूर जारी है। दिलचस्प बात यह है कि अंधविश्वास को दूर करने के लिए पुलिस व प्रशासन भी वर्षो से प्रयासरत है, लेकिन उनके प्रयासों का अब तक सार्थक हल नहीं निकल पाया है। जादू-टोना के नाम पर प्रताड़ित होने वाले लोगों को प्रताड़ना से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार ने भले ही टोनही प्रताड़ना अधिनियम 2005 लागू किया है, मगर कायदे और कानून महज किताबों तक ही सिमट कर रह गए हैं। मौजूदा हालात ऐसा है कि समाज अंधविश्वास से नहीं उबर पा रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत सिवनी में देखने को मिला। उस घटना ने मुझे काफी झकझोर दिया और मुझे ऐसा लगा कि भले ही सरकार कोई भी कानून और धारा को समाज में लागू कर दे, लेकिन उसका पालन ग्रामीण क्षेत्रों में हो पाना असंभव है। 9 जनवरी रविवार की शाम मुझे मेरे मित्र रतन जैसवानी ने बताया कि चांपा के समीपस्थ ग्राम सिवनी में टोना-जादू के चक्कर में 25 महिलाओं पर शामत आ पड़ी है, जिन्हें चांपा के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी बातों को सुनने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और ठंड होने के बाद भी मैं बाईक से श्री जैसवानी के साथ चांपा चला गया। वहां पहुंचने के बाद मैंने कुछ ग्रामीणों से पूछताछ की तो सारा मामला खुलकर सामने आया। ग्रामीणों ने बताया कि गांव के सारथीपारा निवासी सीताराम राठौर की पुत्री कुछ माह पहले खाना बनाते समय स्टोव से झुलस गई थी, जिसका उपचार परिजनों द्वारा चिकित्सक से कराया जा रहा था। मगर उसके जख्म ठीक नहीं हो रहे थे। इस पर सीताराम को जादू-टोना का संदेह हुआ। उसने गांव के बैगा भगवानदीन राठौर को अपने घर बुलवाकर झाड़-फूंक कराई। इस दौरान बैगा ने पास-पड़ोस की किसी महिला पर जादू-टोना का संदेह जताया। उसकी पहचान के लिए सीताराम ने घटना के दिन सुबह आसपास की महिलाओं को अपने घर बुला लिया। बैगा ने टोनही परीक्षण के लिए सभी को एक पीसी हुई जड़ी-बूटी पीने को कहा, तब कुछ महिलाओं ने इंकार कर दिया। इससे सीताराम, उसके भाई राधेश्याम, पुत्र जयकुमार उत्तेजित हो गए और उन्होंने महिलाओं के साथ गाली-गलौज की। ऐसे में महिलाओं ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए बैगा द्वारा दी गई दवाई को पी लिया। दवाई पीने के कुछ देर बाद महिलाएं एक-एक कर जमीन पर बेसुध होकर गिर पड़ी। इसकी खबर कुछ ही देर में गांव भर में फैल गई। खबर सुनकर ग्रामीण सैकड़ों की संख्या में सीताराम के घर पहुंचे और बेसुध लक्ष्मीन बरेठ, लता देवांगन, मालती देवांगन, पार्वती देवांगन, पंचकुंवर बाई, रामबाई श्रीवास, मानकीबाई, गायत्रीबाई, मंगलीबाई, पूर्णिमा, मीराबाई, श्यामबाई, रूक्मिणी, कौशल्या देवांगन सहित 25 महिलाओं को चांपा के बीडीएम अस्पताल पहुंचाया। पूरा घटनाक्रम जानने के बाद मैंने अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर केपी राठौर से जानकारी ली, तब उन्होंने बताया कि कथित बैगा ने कंेवांच की जड़ को पीसकर पिलाया है, जिससे महिलाओं की यह हालत हुई है। पूछताछ में यह भी पता चला कि जड़ी-बूटी पीने वाली एक वृद्धा को गंभीर अवस्था में सिम्स रेफर करना पड़ा, जिसकी हालत हर एक मिनट में बद से बद्तर होती जा रही थी। हालांकि दवा पीकर बीमार हुई सभी महिलाएं आज सकुशल है। वहीं ग्रामीणों के आगे आने से इस घटना को अंजाम देने वाले 6 आरोपी आज जेल में हैं। मगर यहां एक सवाल उठता है कि अंधविश्वास और टोना-जादू के नाम पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं आखिरकार कब तक प्रताड़ित होती रहेंगी। ऐसे अपराध को रोकने के लिए पुलिस के साथ सभ्य समाज के लोगों को भी आगे आना होगा।
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