वेलेंटाइन की सच्चाई

पिछले साल की बात है मेरे जान पहचान की एक लड़की को 14 फरवरी की सुबह एक गिफ्ट मिला, जिसमें किसी का नाम नहीं था। वह कुछ अजीब सा गिफ्ट था। गुमनाम गिफ्ट पाने के बाद लड़की उसे एक तरफ रख देती है, लेकिन शाम को वह गिफ्ट भेजने वाला उसके घर पहुँच जाता है और लड़की को अपने साथ चलने के लिए कहता है। जब वह मना करती है तो वह उससे कहता है कि आज वेलेंटाइन डे है और तुमने मेरा गिफ्ट स्वीकार किया है। इसलिए तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा। यह असभ्य तरीका ठीक नहीं है। वह लड़की तो समझदारी से संभल जाती है, लेकिन वर्तमान में अनेक युवा-युवतियाँ इस प्रणय निवेदन को अपनाकर कुछ ऐसे कदम उठा लेते हैं, जिसके बाद पछतावे के सिवा कुछ नहीं रह जाता।
खासकर हमारी संस्कृति में लड़का-लड़की अगर माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध शादी करते हैं तो लोग यही कहते हैं कि लड़की भाग गई। उसका यूँ जाना ऐसा लगता है मानो उसने अनर्थ किया हो। जबकि सच यही है कि उसने वाकई अनर्थ किया है। उनके माता-पिता जिन्होंने 20-25 साल उसे प्यार किया और वह उन्हें धोखा देकर चली जाती है, जो मात्र कुछ दिनों से उसे चाहता है। आधी उम्र माता-पिता के साथ गुजारने के बाद बची आधी उम्र माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध गुजारना क्या उनके साथ न्याय है। क्या उनकी इच्छा, अपेक्षा और समाज में उनके हैसियत के साथ खिलवाड़ करना, उनके सम्मान को अपमानित करने जैसा नहीं है।
आज मीडिया कुछ कंपनियों के उत्पाद बेचने तथा उनकी पब्लिसिटी के लिए युवा को प्रणय निवेदन करने के तरह-तरह के प्रलोभन देता है। टिप्स बताता है। वहीं मोबाइल कंपनियाँ अपना कारोबार करने के लिए तरह-तरह की आकर्षक योजनाएँ चलाती हैं। अनेक प्रकार के आर्टिकल्स और लुभावने उदाहरण देकर युवा वर्ग को आकर्षित करते हैं। युवा इनसे भ्रमित हो जाते हैं। उन्हें इनमें लिखे प्रेमी-प्रेमियों के किस्से अपने जैसे ही लगने लगते हैं। विभिन्न चैनल भी अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रायोजित करते हैं। केवल अपनी दुकान चलाने के लिए। ये सब समाज का कितना नुकसान करते हैं यह तो केवल समझने वाला ही समझ सकता है।
इन्द्रधनुष नहीं मेरा प्यार, जो सिर्फ सावन में खिले
मोती नहीं मोहब्बत मेरी, जो मिले गहरे पानी तले
चाँद भी नहीं प्यार मेरा, नजर आए बस साँझ ढले
मेरा प्यार है हवा सरीखा, जो हर पल तुम्हें स्पर्श करे.....
और................. तुम्हें पता भी न चले
मोती नहीं मोहब्बत मेरी, जो मिले गहरे पानी तले
चाँद भी नहीं प्यार मेरा, नजर आए बस साँझ ढले
मेरा प्यार है हवा सरीखा, जो हर पल तुम्हें स्पर्श करे.....
और................. तुम्हें पता भी न चले
अच्छा लिखा है आपने पर युवको को कौन समझाए
आप अपना ब्लॉग "अपना ब्लॉग" में सम्मिलित करें जिससे आपको और ज्यादा पाठक मिल सकें
एक अच्छी और प्रेरणादायक पोस्ट| धन्यवाद|
इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|
अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -
वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!
शुभाकॉंक्षी|
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
(देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666
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"मेरा प्यार है हवा सरीखा, जो हर पल तुम्हें स्पर्श करे.....
और................. तुम्हें पता भी न चले"
लाजवाब - वाह वाह
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बहुत अच्छी पोस्ट.....यूं ही लिखते रहिए...
अंतिम पंक्तियाँ बहुत सुंदर !क्या बात !
'मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से '
बहुत सुंदर सार्थक जानकारी