विक्षिप्तों की देखभाल, आखिर किसकी जिम्मेदारी?
शहर की सड़कों पर घूमने वाले विक्षिप्त, आम लोगों के साथ ही पुलिस के लिए भी सिरदर्द बने हुए हैं। कुछ की तो इतनी दहशत है कि लोग उनसे दस कदम दूर ही रहना उचित समझते हैं। उनके रखने का कोई निश्चित स्थान नहीं होने के कारण जहां उनका इलाज नहीं हो पाता, वहीं पुलिस वाले भी मुसीबत मोल लेने से बचते रहते हैं।यहां सवाल यह उठता है कि आखिर उनकी देखरेख की जिम्मेदारी किसकी बनती है? क्या मानवता के नाते ही सही, शासन-प्रशासन को यह जिम्मेदारी नहीं उठानी चाहिए? जांजगीर व चांपा की सड़कों और रेलवे स्टेशन में रोजाना कई विक्षिप्त नजर आते हैं। कचहरी चौक, बीटीआई चौक, नेताजी चौक, चांपा रेलवे स्टेशन, कोरबा रोड के अलावा और भी कई मार्गो पर ये अक्सर घूमते दिखते हैं। चांपा के रेलवे स्टेशन में नजर आने वाले ज्यादातर विक्षिप्त बाहरी राज्यों के हैं। उड़ीसा, बिहार, झारखंड, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र व अन्य राज्यों से उन्हें ट्रेन में बिठाकर छोड़ दिया जाता है, जो ट्रेन से उतरकर स्टेशन परिसर व शहर के चौक-चौराहों में घूमते नजर आते हैं। जीआरपी और पुलिसकर्मी भी इन्हें आफत समझकर ट्रेन में बिठाकर मुक्ति पा लेते हैं। बगैर इधर-उधर देखे तेजी से सड़क पार करना, लोगों के सामने अचानक खड़ा हो जाना, चिल्लाना और डिवाइडर पर सो जाना, विक्षिप्तों के लिए आम बात है। इससे हादसे का खतरा बना रहता है। विक्षिप्तों को पकड़ना आसान नहीं है। पागलखाना के कर्मचारी इस काम में माहिर होते हैं। अगर कोई पागल अनियंत्रित हो जाए तो उनके पास उसे नियंत्रित करने का सभी जरूरी सामान होता है, जबकि पुलिस कर्मियों को इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कुछ मोहल्लों में विक्षिप्तों के कारण दहशत का माहौल बन जाता है। ऐसे में वहां रहने वाले लोग पुलिस को फोन करके बुला लेते हैं, लेकिन पुलिस के सामने भी यह समस्या खड़ी होती है कि आखिर वे विक्षिप्तों को रखे कहां?
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