चिमनी हादसा मामले में न्याय कब ?
23 सितम्बर बालको चिमनी हादसा पर विशेष
भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड परिसर में निर्माणाधीन चिमनी के भरभरा कर ढह जाने से हुई 44 मजदूरों की मौत के मामले में दो साल बाद भी उनके परिजनों को न्याय नहीं मिल सका है। मामले की जांच के लिए सरकार ने आयोग का गठन किया है, जिसकी प्रक्रिया धीमी है। ऐसे में इस हादसे में मारे गए मजदूरों के परिजनों को न्याय मिलने की आस टूटती नजर आ रही है।
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) की निर्माणाधीन 1200 मेगावाट क्षमता की चिमनी 23 सितंबर, 2009 को भरभरा कर गिर गई थी। इस हादसे में 44 मजदूरों की मौत हुई थी। घटना के बाद राज्य सरकार के कई मंत्री व नेता मौके पर पहुंचे, विपक्ष के विधायकों ने भी वहां पहुंचकर जायजा लिया और सभी ने एक स्वर में घटना में मृत मजदूरों के परिवारों को न्याय दिलाने के दांवे किए, लेकिन नतीजा अब तक कुछ भी नहीं निकला। जनता व मृतकों के परिवारों को तसल्ली देने के लिए पुलिस ने मामले में एक-एक करके 17 लोगों को आरोपी बनाया, जिनमें बालको के मैनेजर विरल मेहता, एजीएम दीपक नारंग, इंजीनियर अतुल महापात्रा, जीडीसीएल कंपनी के मैनेजर मनोज शर्मा, आलोक शर्मा, सुनील सिंह, चीनी कंपनी सेपको के वू छुनान, वांग क्यूंग, ल्यू जांक्षन, नेशनल बिल्डिंग सीमेंट कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन के ज्वाइंट डायरेक्टर एमएम अंसारी, जीएमआर के गोस्वामी, प्रो. यूके मंडल शामिल हैं, इन लोगों को बारी-बारी गिरफ्तार कर पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जिन्हें कुछ दिनों बाद जमानत मिल गई। बड़ी विड़म्बना की बात है कि उन्हें जमानत भी हमारे छत्तीसगढ़िया लोगों की जमीन के पट्टे से मिल गई, जिसका बाद में खुलासा भी हुआ, इसके बाद भी उन कातिलों का कुछ नहीं बिगड़ा और न ही उनकी जमानत निरस्त की गई, लिहाजा वे आज आराम से अपना दिन गुजार रहे हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि पूंजीपतियों और गुनाहगारों के आगे पुलिस, प्रशासन, सरकार व विपक्ष की भूमिका निभाने वाले नेता ही नहीं बल्कि, न्याय प्रणाली भी बिक गई है। इस मामले की जांच में समय ऐसा गुजरता जा रहा है, जैसे कोई जमीन या जायदाद के प्रकरण की सुनवाई चल रही है, जो शायद सालों-साल चलती रहेगी। राज्य सरकार ने हादसे के कुछ माह बाद ही घटना की न्यायिक जांच के आदेश देते हुए जस्टिस संदीप बख्शी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी थी, जिनके द्वारा मामले में केवल पेशी और सिर्फ पेशी बढ़ाई जा रही है। जबकि जांच आयोग के गठन के दौरान अध्यक्ष संदीप बख्शी ने दो माह के भीतर ही जांच पूरी कर रिपोर्ट सरकार को सौंपने की बात कही थी। मगर हादसे के दो वर्ष बीत गए, लेकिन आयोग की जांच पूरी नहीं हो सकी है। जांच में विलंब होने से घटना के साक्ष्य भी खत्म होते जा रहे हैं, वहीं घटना के चश्मदीद गवाहों को बालको कंपनी ने पैसे देकर या फिर कानूनी भय दिखाकर खरीद भी लिया है, इसमें कोई शक नहीं है। इस मामले में एक अहम बात यह भी है कि जांच आयोग के समक्ष जितने भी साक्ष्य या दस्तावेज पहुंचे है, उसमें इस हादसे को आकाशीय बिजली गिरने से होना बताया गया है। उन साक्ष्यों को प्रस्तुत करने वाला कोई ग्रामीण या घटना स्थल के आसपास मौजूद लोग नहीं, बल्कि बालको, सेपको और जीडीसीएल के कर्मचारी ही थे, जिन्हें इस काम के लिए एक बड़ी रकम दी गई थी। इस गड़बड़ी की पुष्टि उन शपथ पत्रों से हुई, जिन्हें साक्ष्य बतौर प्रस्तुत करने के लिए कोरबा के एक ही नोटरी से तैयार कराया गया था। मामले में हिंदी-चीनी भाषाई विवाद से भी सुनवाई में देरी हुई, इस वजह से आयोग का कार्यकाल छह मर्तबा बढ़ाना पड़ा। इसके अलावा मामले के आरोपी विकास भारती, संजय देव और शिवशक्ति पाल अभी भी पुलिस गिरफ्त से बाहर हैं। वर्तमान में मामला जिला न्यायालय कोरबा में विचाराधीन है, वहीं आयोग की जांच अंतिम चरण में पहुंचने की बात जांच आयोग के अध्यक्ष द्वारा कही जा रही है। बहरहाल, चिमनी मामले में पुलिस व जांच आयोग द्वारा अब तक की गई कार्रवाई इतनी लचर है कि साक्ष्य के कमजोर होने से हादसे के गुनाहगारों को सजा मिलने की संभावना बहुत कम लग रही है।
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