गरीबों को इलाज कम, दर्द ज्यादा
-स्मार्ट कार्ड लेकर भटक रहे हजारों गरीब
स्वास्थ्य सुरक्षा बीमा योजना के नाम पर जांजगीर-चाम्पा जिले में लाखों रूपए पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन इस योजना से गरीबों को इलाज कम बल्कि दर्द ज्यादा मिल रहा है। सैकड़ों गरीब ऐसे है जो गंभीर बीमारियों के उपचार कराने के लिए कार्ड लेकर सीएचएमओ कार्यालय व सरकारी अस्पताल में भटक रहे है, लेकिन स्वास्थ्य अमला उन्हें उचित सलाह देने से भी परहेज कर रहा है।
भारत सरकार द्वारा आरएसबीआई (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) वर्ष 2008 में शुरू की गई थी। इस योजना का लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों का हेल्थ इंश्योरेंस करना है। इसके तहत बीपीएल परिवार को स्मार्ट कार्ड दिए गए हैं। इस कार्ड से एक परिवार के पांच सदस्य अपना इलाज निशुल्क किसी भी सरकारी व गैर सरकारी-निजी अस्पताल में करा सकते हैं। एक कार्ड पर परिवार को 30 हजार रुपए एक साल की वैलेडिटी के साथ दिए जाते हैं। वर्ष 2009 में इस योजना के तहत बहुत कम परिवारों को यह सुविधा मिली थी। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जिले में 50 हजार से ज्यादा बीपीएल कार्ड धारक हैं। फिर भी इस बार यह टारगेट 50 प्रतिशत के आस-पास सिमट रहा। राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य बीमा योजना को अगर व्यय के नजरिए से देखी जाए तो इलाज पर केन्द्र सरकार द्वारा लाखों रुपए लुटाए जा रहे हैं पर, यह आधा सच मात्र है। पूरा सच तो यह है कि योजना केवल इन्हीं लाखों के बहाव में ही फंसकर रह गई है। इसकी हकीकत जिले के किसी भी ब्लॉक में देखने को मिल जाएगी। योजना सरकारी अस्पतालों से बढ़कर नीजि अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाई है। हाल यह है कि अभी तक जिले में महज एक ही नीजि अस्पताल में स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ शुरू हो पाया है। कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना अभी भी पूरी तरह से धरातल पर उतर नहीं पाई है। वहीं, इसके आसार भी नजर नहीं आ रहे हैं। दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की बीपीएल सूचियों के आपस में मेल नहीं खाने से हजारों बीपीएल परिवार को स्मार्ट कार्ड की सुविधा नहीं मिल पाई है। स्वास्थ्य विभाग ने केंद्र सरकार से मिली बीपीएल सूची के आधार पर काम किया, लेकिन पार्षदों के पास प्रशासन की सूची है। ऐसे में उन परिवारों का स्मार्ट कार्ड नहीं बन पाए, जिनका नाम प्रशासन की सूची में तो है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की सूची में नहीं। वहीं स्मार्ट कार्ड बनाने से लेकर इस योजना में राशि के भुगतान के कई मामले विवाद का विषय बन चुके हैं। दरअसल बीमा कंपनी की मनमानी इस योजना पर ग्रहण लगा रही है। जहां बीमा कंपनी व सहयोगी संस्था ने जिले कें निजी अस्पतालों में इस योजना को शुरू करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर एक साल तक इंतजार कराने के बाद भी आज तक स्मार्ट कार्ड मशीन नहीं लग पाना विभागीय उदासीनता को दर्शाता है, कि गरीबों के लिए बनी यह योजना उनके घर से ही दूर हो गई है। निजी अस्पतालों में योजना के तहत गरीबों को इलाज कम, दर्द ज्यादा मिल रहा है। योजना में बीमा के तहत भुगतान की राशि भी इस पूरे खेल का भेद खोल रही है। निजी अस्पतालों को जहां लाखों रूपए भुगतान किए गए हैं, वहीं सरकारी अस्पतालों का भुगतान हजारों में भी नहीं है। हालांकि, इसके पीछे सरकारी तंत्र की भी उदासीनता कहीं न कहीं वजह रही है।
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