कई बार बदला तिरंगे का स्वरूप
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक तिरंगे की कहानी में कई मोड़ आए। तिरंगे का स्वरूप पहले कुछ और था, जबकि वर्तमान में कुछ और है। आज देश 65 वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मना रहा है, लेकिन भारत के बहुत ही कम लोगों को अपने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में पूरी जानकारी है।
देश के राष्ट्रीय ध्वज की पेशकश सबसे पहले 1921 में महात्मा गांधी ने की थी, जिसमें बापू ने दो रंग के झंडे को राष्ट्रीय ध्वज बनाने की बात कही थी। इस झंडे को मछलीपट्टनम के पिंगली वैंकैया ने बनाया था। दो रंगों में लाल रंग हिन्दू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था। बीच में गांधी जी का चरखा था, जो इस बात का प्रमाण था कि भारत का झंडा अपने देश में बने कपड़े से निर्मित है। इसके बाद स्वतंत्रता के आंदोलन के अंतर्गत खिलाफत आंदोलन में तीन रंगों के स्वराज झंडे का प्रयोग किया गया। मोतीलाल नेहरू ने खिलाफत आंदोलन में इस झंडे को थामा और बाद में कांग्रेस ने 1931 में स्वराज झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज की स्वीकृति दी। इसमें ऊपर केसरिया बीच में सफेद और नीचे हरा रंग था। साथ ही बीच में नीले रंग से चरखा बना हुआ था। देश के आजाद होने के बाद संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 22 जुलाई 1947 को वर्तमान तिरंगे झंडे को राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया, जिसमें तीन रंग थे। ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंगा। सफेद रंग की पट्टी में नीले रंग से अशोक चक्र बना था, जिसमें 24 तीलियां थीं, जो धर्म और कानून का प्रतिनिधित्व करती थीं। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का वही स्वरूप आज भी मौजूद है। स्वराज झंडे पर आधारित तिरंगे झंडे के नियम-कानून फ्लैग कोड ऑफ इंडिया द्वारा बनाए गए, जिसमें निर्धारित था कि झंडे का प्रयोग केवल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही किया जाएगा। इसके बाद 2002 में उद्योगपति व सांसद नवीन जिंदल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को निर्देश दिए कि अन्य दिनों में भी झंडे का प्रयोग नियंत्रित रूप में हो सकता है। इसके बाद 2005 में जो सुधार हुआ उसके अंतर्गत कुछ परिधानों में भी तिरंगे झंडे का प्रयोग किया जा सकता है।
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